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विश्वकर्मा जयंती पर आयोजित हुआ कवि सम्मेलन

👉दूरदराज के जनपदों से आये कवि
👉देश और समाज की व्यथा को कविताओं में ढाला

बीघापुर, उन्नाव। देव शिल्पी भगवान विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर विश्वकर्मा कल्याण समिति शाखा बीघापुर द्वारा कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें कई जनपदों के कवियों और शायरों ने शिरकत की।

कवि सम्मेलन का शुभारम्भ विश्वकर्मा व सरस्वती की प्रतिमाओं पर माल्यर्पण कर अध्यक्षता कर रहे डा राम किशोर वर्मा के द्वारा कुमार प्रदीप शर्मा की वाणी वंदना से कराया गया। उन्होंनें पढ़ा- होंठों पे अपने पहले सी मुस्कान ले के आ, चेहरे पे अपने फिर वही पहचान ले के आ। इसके बाद मनोज सरल ने पढ़ा- किसी जाति धर्म को नहीं नफरत से देखिए, हिन्दू मुसलमां को न बांटने की बात हो। अनुज कुमार तिवारी ने पढ़ा- हम ऐसे मस्त फकीर हैं, धन दौलत की चाह नहीं बस शब्दों की जागीर है, अक्षर-अक्षर भाव बसा कर खींचे नई लकीर हैं। डॉ. मान सिंह ने देश के वर्तमान हालात पर रचना पढ़ी- आशियाने गरीबों के तोड़े गए, तार उनके हैं दंगों से जोड़े गए, सिसकियां भर रही आज इंसानियत, हैं फ़सादी खुलेआम छोड़े गए। रायबरेली से आये हास्य कवि मधुप श्रीवास्तव नर कंकाल ने पढ़ा- जब तक पांचाली दुःशासन के रक्त से केश नहीं धोएगी, इस राष्ट्र की संस्कृति इसी तरह रोयेगी।

लोकगीतकार संजीव तिवारी पिंटू ने किसानों की चारे की किल्लत पर पढ़ा- गोली से मारौ चहै फांसी म टांगौ, मगर मोरे भइया हमते भूसा न मांगौ। सुल्तानपुर के शायर आलम सुल्तानपुरी की गंगा पर पढ़ी गयी कविता सराही गयी। अध्यक्षता कर रहे डॉ. राम किशोर वर्मा ने अपनी हास्य कविताओं से श्रोताओं की सराहना बटोरी। खाली घण्टा भरे का घरै उई गए, आय दुगुनी योगी के सांड़ कइ दिहिनि। संचालन कर रहे प्रतापगढ़ से आये हरि बहादुर सिंह हर्ष ने पढ़ा- भव्य भारती का भला रखे सदा विशाल, शत्रुओं के वक्ष पे तिरंगा गांड देते हैं। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि उप्र व्यापार मण्डल ने महामंत्री राजन बाजपेयी रहे। विश्वकर्मा कल्याण समिति के देवशरण विश्वकर्मा, जय शंकर शर्मा, मनीष शर्मा आदि ने सभी का स्वागत किया एवं आभार व्यक्त किया।

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