काव्य गोष्ठी में कवियों ने पढ़ी देश और समाज की पीड़ा

बीघापुर, उन्नाव। ग्राम मगरायर स्थित माँ मन्सा देवी बैसवारा साहित्यिक परिषद् की 22वीं त्रैमासिक काव्य गोष्ठी नरेंद्र आनंद की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई।
उन्होनें पढ़ा- मायावी शिखरों में चढ़कर हम अपनों से दूर हो गए, वट के वृक्ष खजूर हो गए, पीपल भी मजबूर हो गए। वहीं मनोज सरल ने देश में बढ़ती वैमनुष्यता पर पढ़ा- केले की बाग बैरी छांटने की बात हो, हर उच्च निम्न खाईं पाटने की बात हो, किसी जाति धर्म को नहीं नफरत से देखिए, हिन्दू मुसलमान को न बांटने की बात हो। कमलेश प्रजापति ने पढ़ा- घर के कमरे बांट लिए हैं बेटों ने बटवारे में, मात पिता का बिस्तर अब लगता है ओसवारे में। गंगा प्रसाद यादव ने पढ़ा- ऐसी हवा चली गाँवों में मानव की पहचान नदारत, लोग हुए मतलब परस्त, मदद करें वो हाथ नदारत। रामू अवस्थी ने पढ़ा- जहाँ खड़े होते हैं रहबरों के हुजूम, अक्सर वहीं जिंदगियां लुट जाती हैं। मृत्युंजय पांडेय ‘राजन’ ने पढ़ा- बगुले पुराण गढ़ रहे हैं काग देय उपदेश, है उल्टे पुल्टे दौर का अजग गज़ब परिवेश। सिद्धार्थ दीक्षित ने पढ़ा- हर दिन नया चेहरा लगा फितरत छुपाते हो, जब आखिरी चेहरा बचे, कल क्या करोगे सोचना। अन्य कवियों में चन्द्र किशोर सिंह, शिवपाल सिंह, अयोध्या प्रसाद लोधी, सुदर्श दीक्षित, जय कृष्ण पांडेय, संजीव तिवारी, रामप्यारे चैम्पियन आदि ने भी काव्यपाठ किया। गोष्ठी का संचालन योगेंद्र अक्खड़ के लिया ।

रिपोर्ट: डॉ. मान सिंह

Leave a Comment