Search
Close this search box.
Search
Close this search box.

Navratri: बिहार ने दुनिया को दिया श्रीदुर्गा सप्तशती का ज्ञान, बक्सर के इस मंदिर में हुई थी रचना

Patna: नवरात्र के दिन जारी हैं. 8 अक्टूबर यानी आज देवी मां के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा की जा रही है. देवी का यह दूसरा स्वरूप सत्व गुणों का प्रतीक है. इसके अलावा यह ब्रह्मचर्य, तप और त्याग का भी प्रतीक है. जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए तप कितना जरूरी है, देवी ब्रह्मचारिणी इसी विज्ञान को सामने रखती हैं. इस मौके पर देवी मंदिरों में श्रद्धालु पहुंच रहे हैं. बिहार के बक्सर जिले में स्थित देवी चंडिका का मंदिर अपने पौराणिक महत्व के कारण आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर की प्राचीनता के अलावा एक और विशेषता है, जो बहुत कम लोगों को ज्ञात है. यह विशेषता है श्रीदुर्गा सप्तशती.

नवरात्र के मौके पर जिस आधार पर मां के स्वरूप का वर्णन और उनकी महिमा गाई जाती है, वह श्रीदुर्गा सप्तशती है. नवरात्र में कई श्रद्धालु पूरे नौ दिन देवी की आराधना की प्रमुख पुस्तक श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं क्या है सप्तशती और कहां हुई इसकी रचना? मान्यता है कि बक्सर में स्थित श्री चंडिका स्थान मंदिर में ही श्रीदुर्गासप्तशती की रचना हुई थी.

ये भी पढ़ें- नीतीश सरकार ने मूर्ति विसर्जन के लिए जारी किये जरूरी निर्देश, करना होगा इन नियमों का पालन

मनोकामनाओं को पूरा करने वाला स्त्रोत
श्री दुर्गा सप्तशती, मां भगवती की दिव्य प्रार्थना है. यह मनोकामनाओं को पूरा करने वाला स्तोत्र हैं. इसे मां को प्रसन्न करने वाला एक तरह का मंत्र भी कह सकते हैं. दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय हैं, 700 श्लोक हैं. दुर्गा सप्तशती में महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती की उपासना है. सप्तशती के पाठ से मां दुर्गा प्रसन्न होती हैं. दुर्गा सप्तशती का पाठ हर मनोकामना को पूरा करता है, साथ ही असंभव को भी संभव कर देता है. इस दिव्य पाठ से सभी बाधाएं दूर होती हैं और जीवन में हो रहे सारे अपशकुन दूर हो जाते हैं.

यहां हुई थी श्रीदुर्गा सप्तशती की रचना
बिहार का बक्सर जिला प्राचीन काल का विख्यात नगर रह चुका है. यह वह स्थान रहा है जिसकी मौजूदगी चारों युगों में रही है. बक्सर को ही प्राचीन काल में व्याघ्रसर कहा जाता था. मान्यता है कि सतयुग में यही स्थल ब्रह्मसर के नाम से भी जाना जाता था. बाघों की अधिकता के कारण इसका नाम व्याघ्रसर पड़ा. इसी बक्सर में आज स्थित है प्राचीन चंडिका मंदिर. इस देवी धाम का वर्णन पुराणों मे भी हुआ है. पुराण के अनुसार यहीं पर मेधा ऋषि ने राजा सुरथ व समाधि वैश्य को मां दुर्गा के महात्म्य का वर्णन सुनाया था. इसी महात्मय को श्रीदुर्गा सप्तशती के नाम से जाना गया है.

ये भी पढे़ं- Durga Puja: कलश स्थापना में है बिहार की कृषि प्रधानता की झलक, ऐसे कीजिए पूजा

महाभारत काल से भी जुड़ा है इतिहास
मान्यता है कि महाभारत काल से भी इस मंदिर का इतिहास जुड़ा हुआ है. जब श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ देने का फैसला किया तो बड़े भाई बलराम युद्ध से तटस्थ हो गए. उन्होंने इस दौरान तीर्थयात्रा का प्रण लिया था. इस दौरान बलराम ने इस क्षेत्र की यात्रा की थी. यहां पर परम तपस्वी वक्र ऋषि का आश्रम था कहा जाता है इन्हीं के नाम पर इस ग्राम का नाम बक्सर पड़ा था. यहां गंगा कुछ समय के लिए उत्तरमुखी प्रवाहित होने के कारण इस स्थान को काशी की तरह पवित्र माना जाता है. यहां दो प्रतिमाएं मां चंडिका व अम्बिका की स्थापित हैं. देवी अंबिका, जहां सतोगुणी हैं, वहीं देवी चंडिका तमोगुणी स्वरूप का प्रतीक हैं.

Source link

Leave a Comment